हरि, हौं ऐसो अमल कमायौ -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राम धनाश्री




हरि, हौं ऐसो अमल कमायौ।
साबिक जमा हुती जो जोरी, मिनजालिक तल ल्‍यायौ।
वासिल बाकी, स्‍याहा मुजमिल, सब अधर्म की बाकी।
चित्रगुप्‍त सु होत मुस्‍तौफी, सरन गहूँ मैं काकी।
मोहरिल पाँच साथ करि दीणे, तिनकी बड़ी बिपरीत।
जिम्‍में उनके, माँगैं, यह तौ बड़ी अनीति।
पाँच-पचीस साथ अगवानी, सब मिलि काज विगारे।
सुनी तगीरी, बिसरि गई सुधि, मो तजि भए नियारे।
बढ़ौ तुम्‍हार बरामद हूँ कौ लिखि कीनौ है साफ।
सूरदास की यहै बीनती, दस्‍तक कीजै माफ।।।143।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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