रसिक राधे बोली नंदकुमार।
दरसन कौ तरसत हरि लोचन, तू सोभा की धार।।
खंजरीट, मृग, मीन, मधुप मिलि, रंभा रुचि अनुसार।
गौरि सकुच, ससि बिरथ कियौ रथ, मेरु लुट्यौ बड़ितार।।
कौन हेत तै मिट्यौ सितासित, बिछुरी कौन बिचार।
मंदाकिनि मानौ सिर धरि कै, रुद्रनि करी पुकार।।
राख्यौ मेलि पीठि तै पर धन, हर जु कियौ बिनु हार।
'सूरदास' प्रभु सौ हठ कीन्हौ, उठि चलि क्यौ न सवार।।2763।।