तू चलि री बन बोली स्याम।
कमल नैन के तू अति बल्लभ, सुरति करौ हरि आतुर काम।।
मुरली मै नव नाम प्रकासत, तेरै हित कौ सुनि री बाम।
कोमल करनि सुमन बहु तोरत, रुचि सौ सेज रचत गृह गृह काम।।
मन क्रम बचन सपथ चरननि की, बिसरत नही तुम्हारौ नाम।
'सूरदास' प्रभु कौ मिलि भामिनि, जौ पायौ चाहति बिस्राम।।2762।।