माई आधु तौ बधाइ बाजै मँदिर महर के -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग जैजैवंती


(माई) आधु तौ बधाइ बाजै मँदिर के।
फूले फिरैं गोपी-ग्वाल ठहर ठहर के।
फूली फिरैं धेनु धाम, फूली गोपी अंग अंग,
फूले फरे तरवर आनंद लहर के।
फूले बंदीजन द्वारे, फूले फूले बंदवारे,
फूले जहाँ जोइ सोइ गोकुल सहर के।
फूलैं फिरैं जादौकुल आनंद समूल मूल,
अंकुरित पुन्य फूले पाछिले पहर के।
उमंगे जमुन-जल, प्रफुलित कुंज-पुंज,
गरजत कारे भारे जूथ जलधर के।
नृत्यकत मदन फूले, फूली रति अंग अंग,
मन के मनोज फूले हलधर वर के।
फूले द्विज-संत-वेद, मिटि गयौ कंस-खेद,
गावत बधाइ सूर भीतर-बहर के।
फूली है जसोदा रानी, सुत जायौ सांर्गपानी,
भूपति उदार फूले भाग फरे धर के।।34।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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