भरि भरि लेति लोचन नीर -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग केदारौ


भरि भरि लेति लोचन नीर।
तुम बिना व्रजनाथ सुंदरि विरह खेद अधीर।।
कमल उर पर धरति छिन छिन छिरकि चंदन चीर।
जाल मग ससि किरन रोकति मलय मंद समीर।।
हौ इहाँ तुम पास आयौ देखि मनसिज भीर।
‘सूरदास’ सुजान श्रीपति मिलि हरहु तनपीर।।4111।।

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