उमँगि चले दोउ नैन विसाल।
सुनि सुनि यह संदेस स्यामघन, सुमिरि तुम्हारे गुन गोपाल।।
आनन अरु उरजनि के अंतर, जलधारा बाढ़ी तिहि काल।
मनु जुग जलज सुमेरु सृंग तै, जाइ मिले सम ससिहि सनाल।।
भीजे उर अंचल अति राजित, तिन तरहरि मुक्तनि की माल।
मानौ इंदु नवल नलिनी दल, लंकृत अमी अंसु-कन-जाल।।
कहँ वह प्रीति रीति राधा की, कहँ यह करनी उलटी चाल।
‘सूरदास’ प्रभु कपट वचन तै, क्यौ जीवै विरहिनि वेहाल।।4112।।