उमँगि चले दोउ नैन बिसाल -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग धनाश्री


उमँगि चले दोउ नैन विसाल।
सुनि सुनि यह संदेस स्यामघन, सुमिरि तुम्हारे गुन गोपाल।।
आनन अरु उरजनि के अंतर, जलधारा बाढ़ी तिहि काल।
मनु जुग जलज सुमेरु सृंग तै, जाइ मिले सम ससिहि सनाल।।
भीजे उर अंचल अति राजित, तिन तरहरि मुक्तनि की माल।
मानौ इंदु नवल नलिनी दल, लंकृत अमी अंसु-कन-जाल।।
कहँ वह प्रीति रीति राधा की, कहँ यह करनी उलटी चाल।
‘सूरदास’ प्रभु कपट वचन तै, क्यौ जीवै विरहिनि वेहाल।।4112।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः