भरि भरि लेति ऊरध स्वास -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग केदारौ


भरि भरि लेति ऊरध स्वास।
साँवरे व्रजनाथ तुम बिनु, दुखित मनसिज त्रास।।
अमित पीर अधीर डोलति, सुमिरि नैन विलास।
तेइ सुख दुख भए दारुन, जे किए रस रास।।
निगम गुरुजन लोग निदरत, जग करत उपहास।
‘सूर’ तुम बिनु विकल विरहिनि, मरति दरसन प्यास।।4110।।

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