सुनहु स्याम सुजान -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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सुनहु स्याम सुजान, तिय गजगामिनि कौ पीर।
विरह सर गंभीर ग्राह जु, ग्रसी काम अधीर।।
सोच पंक जु सनी सुंदरि, मोच नैननि नीर।
चक्र लै कै बेगि धावहु, करि कृपा बलबीर।।
नही कछु सँभार विहबल, विकल भई सरीर।
कोटि दुःख समूह फंदनि, काढ़ि आनहु तीर।।
कहा जानि छँड़ाइ लीन्हौ, द्विरद दीनदयाल।
‘सूर’ प्रभु न बिसारियै जू, राधिका सी बाल।।4109।।

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