प्यारी पीतांबर उर झटक्यौ।
हरि तोरी मोतिनि की माला, कछु गर, कछु कर लटक्यौ।।
ढीठौ करन स्याम तुम लागे, जाइ गही कटि-फेंट।
आपु स्याम रिस करि अंकम भरी, भर्इ प्रेम की भेंट।।
जुवतिनि घेरि लियौ हरि कौं तब, भरि भरि धरि अँकवारि।
सखा परस्पर देखत ठाढ़े, हँसत देत किलकारि।।
हाँक दियौ करि नंद-दुहाई, आइ गए सब ग्वाल।
सूर स्याम कौं जानति नाहीं, ढीठि भर्इ हैं बाल।।1531।।