दधि कौ दान मेटि यह ठान्यौ।
सुनहु स्याम अति अचुर भए हौ, आजु तुम्हैं हम जान्यौ।।
जो कछु दूध दह्यौ हम देतीं, लै खाते मिलि ग्वाल।
सोऊ खोइ हाथ तैं बैठे, हँसति कहति ब्रज-बाल।।
यह सुनि स्याम सबनि कर तैं दधि-मटुकी लई छँड़ाइ।
आपुन खाइ, सखनि कौं दीन्है, अति मन हरष बढ़ाइ।।
कछु खायौ, कछु भुई ढरकायौ, चितै रहीं ब्रज-नारि।
सूर स्याम बन-भीतर जुवतिनि, ये ढंग करत मुरारि।।1530।।