हम भई ढीठि भले तुम ग्वाल।
दीन्हौ ज्वाब दई कौ चैहौ, देखौ री यह कहा जँजाल।।
बन-भीतर जुवतिनि कौ रोकत, हम खोटी, तुम्हरे ये ख्याल।
बात कहन कौं येऊ आवत, बड़े सुधर्मा धर्महिं पाल।।
साखि सखा की ऐसी भरिहौ, तब आवहुगे जीति भुवाल।
आए हैं चढि़ रिस करि हम पर, सूर हमहिं जानत बेहाल।।1532।।