प्रभु, मोहिं राखियै इहि ठौर -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग रामकली



प्रभु, मोहिं राखियै इहिं ठौर।
केस गहत कलेस पाऊँ करि दुसासन जोर।
करन,भीषम, द्रोन, मानत नाहिं कोउ निहोर।
पाँच पति हित हारि बैठे, रावरै हित मीर।
धनुष-बान सिरान, कैधौं गरुड़ वाहन खोर।
चक्र काहु चौरायौ, कैधौं भुजनि बल भयौ थोर।
सूर के प्रभु कृपा-सागर, चितै लोचन-कोर।
बढ़यौ बसन-प्रवाह जल ज्‍यौं, होत जय-जय सोर।।253।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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