लाज मेरी राखौ स्‍याम हरी -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग आसावरी




लाज मेरी राखौ स्‍याम हरी।
हा हा करि द्रौपदी पुकारो, बिलँब न करौ घरी।
दुस्‍सासन अति दारुन रिस करि, केसनि करि पकरी।
दुष्‍ट-सभा पिसाच दुरजोधन, चाहत नगन करी।
भीषम, द्रोन, करन, सब निरखत, इनतैं कछु न सरी।
अर्जुन-भीम महाबल जोधा, इनहूँ मौन धरी।
अब मोकौं धरि रही न कोऊ, तातै जाति मरी।
मेरैं मात-पिता-पति-बंधू, एकै टेक हरी।
जय-जयकार भयौ त्रिभुवन मैं जब द्रौपदि उबरी।
सूरदास प्रभु सिंह-सरन-गति स्‍यारहिं कहा डरी।।।254।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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