नैना ऐसे हठी हमारे -सूरदास

सूरसागर

2.परिशिष्ट

भ्रमर-गीत

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नैना ऐसे हठी हमारे।
परवस भए रूप-रस-लोभी निरखि निमेष बिसारे।।
राखे रोकि सखी घूँघट-पट टरत नही ये टारे।
नैकु बिलोकत परी ठगौरी भए लाज तजि न्यारे।।
अपनौ दाम होइ जौ खोटौं दोष न परखत हारे।
जौ पै सरबस दयौ ‘सूर’ प्रभु अब नहि बनत पुकारै।। 25 ।।

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