सखी मेरे लोचन लोभ भरे -सूरदास

सूरसागर

2.परिशिष्ट

भ्रमर-गीत

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सखी मेरे लोचन लोभ भरे।
जिहिं टक परे स्याम सुदर सौ तिहिं टक सौ न टरे।।
निद्रा तजी निमेष निवारी सदा रहत उघरे।
सूल सलाक सहत निसि-बासर बिरह बयारि भरे।।
लोक-वेद-कुल-लाज राज भय ये एकौ न डरे।
नैन ‘सूर’ नाही बस मेरै कितै उपाइ करे।। 26 ।।

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