नाही कछु सुधि रही हिए -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग कान्हरौ


नाही कछु सुधि रही हिए।
सुनहु स्याम वे सखी राधिकहिं, जगुवतिं जतन किए।।
सैन सूच, नख लिखतिं किसलयनि, स्रवन न सब्द छिए।
कर कंकन कोकिला उड़ावतिं, बिनु मुख नाम लिए।।
ससि संका निसि जालनि के मग, बसन बनाइ सिए।
दिसि दिसि सीत समीरहिं रोकतिं, अंचल ओट दिए।।
मृगमद मलय परसि तन तलफत, विजनु ष विषम पिए।
जौ न इते पर मिलहु ‘सूर’ प्रभु, तौ जानिबी जिए।।4118।।

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