नाम कहा तेरौ री प्यारी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग नट


नाम कहा तेरौ री प्यारी।
बेटी कौन महर की है तू, को तेरी महतारी।
धन्य कोख जिहिं तोकौं राख्यौ, धनि घरि जिहिं अवतारी।
धन्य पिता माता तेरे, छबि निरखति हरि-महतारी।
मैं बेटी वृषभानु महर की, मैया तुमकौं जानतिं।
जमुना-तट बहु बार मिलन भयौ, तुम नाहिन पहिचानतिं।
ऐसौ कहि, वाकौं मैं जानति, वह तो बड़ी छिनारि।
महर बड़ौ लंगर सब दिन कौ, हँसति देति मुख गारि।
राधा बोलि उठी, बाबा कछु तुमसौ ढीठौ कीन्हौ।
ऐसे समरथ कब मैं देखे हँसि प्यारिहिं उर लीन्हौ।
महरि कुँवरि सौं यह कहि भाषति, आउ करौं तेरी चोटी।
सूरदास हरषति नँदरानी, कहति महरि हम जोटी।।703।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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