जसुमति राधा कुँवरि सँवारति।
बड़े बार सीमंत सीस के, प्रेम सहित निरुवारति।।
माँग पारि बेनी जु सँवारति, गूँथी सुंदर भाँति।
गोरैं भाल बिंदु बंदन, मनु, इंदु प्रात-रबि कौति।।
सारी चीरि नई फरिया लै, अपने हाथ बनाइ।
अंचल सौं मुख पोंछि अंग सब, आपुहि लै पहिराइ।।
तिल चाँवरी, बतासे, मेवा, दियौ कुँवरि की गोद।
सूर स्याम-राधा-तनु चितवत, जसुमति मन-मन मोद।।704।।