देखि, महरि मनहीं जु सिहानो।
बोलि लई, बूझति नँदरानी कहि मधुरे मधु बानी।
ब्रज मैं तोहिं कहूँ नहिं देखी, कौन गौउँ है तेरौ।
भली काल्हि कान्हहिं गहि ल्याई, भूल्यौ तो सुर मेरौ।
नैन बिसाल, बदन अति सुंदर, देखत नीकी, छोटी।
सूर महरि सविता सौं, बिनवति, भली स्याम की जोटी।।702।।