नागरि हँसति हृदय डर भारी।
कबहुँ अंक भरि लेति उरज बिच, कबहुँ करति मनुहारी।।
मान करत नीकै नहिं लागौ, दूरि करौ यह ख्याल।
नैकु नहीं चितवत राधा तन, निठुर भए नंदलाल।।
सीस धरति चरननि लै पुनि पुनि, पिय कौ रूप निहारत।
'सूरदास' प्रभु मान धरयौ दृढ, धरनी नखनि बिदारत।।2147।।