लाल निठुर ह्वै बैठि रहे।
प्यारी हा हा करति, मनावति, पुनि पुनि चरन गहे।।
नहिं बोलत, नहिं चितवत मुख तन, धरनी नखनि करोवत।
आपु हँसति पुनि पुनि उर लागति, चकित होति मुख जोवत।।
कहा करत यह बोलत नाहीं, पिय यह खेल मिटावहु।
'सूर' स्याम मुख कोटि-चंद्र-छवि, हँसिकै मोहि दिखावहु।।2146।।