नर देहो पाइ चित चरन-कमल दीजै -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग रामकली




नर देहो पाइ चित चरन-कमल दीजै।
दीन बचन, संतनि-सँग दरम-परस कीजै।
लीला-गुन अमृत रस स्‍त्रवननि पुट पीजै।
सुंदर सुख निरखि, ध्‍यान नैन माहिं लीजै।
गद्गद सुर, पुलक रोम अंक प्रेम भीजै।
सूरदास गिरिधर-जस गाइ गाइ जीजै।।72।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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