जनम सिरानौई सौ लाग्यौ।
रोम रोम, नख-सिख लौं मेरै, महा अघनि बपु पाग्यौ।
पंचनि के हित-कारन यह मन जहँ तहँ भरमत भाग्यौ।
तीनौ पन ऐसैही खोए, समय गए पर जाग्यौ।
तौ तुम कोऊ तारयौ नहिं, जो मोसौं पतित न दाग्यौ।
हौं स्त्रवननि सुनि कहत न एकौ, सूर सुधारौ आग्यौ।।73।।