गाइ लेहु मेरे गोपालहिं -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग नट




गाइ लेहु मेरे गोपालहिं।
नातरु काल-ब्‍याल लेतै है, छाँड़ि देहु तुम सब जंजालहिं।
अंजलि के जल ज्यौं तन छीजत, खोटे कपट तिलक अरु मालहिं।
कनक-कामि‍नी सौं मन बाँध्‍यौ, ह्वै गज चल्‍यौ स्‍वान की चालहिं।
सकल सुखनि के दानि आनि उर, दृढ़ बिस्‍वास भजौ नँदलालहिं।
सूरदास जो संतनि कौं हित, कृपावंत मेटत दुख जालहिं।।74।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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