दूतिका हँसति हरि चरित हेरै -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग कल्यान


दूतिका हँसति हरि चरित हेरै।
कबहुँ कर आपने रचत सुमननि सेज, कबहुँ मग निरखि कहै भयो झेरै।।
काम आतुरि भरे, कबहुँ बैठत खरे, कबहुँ आगै जाइ रहत ठाढे।
चतुर सखि देखि पुनि राधिका पै गईं झेर क्यौ करति, धन कंत चाढे।।
सुनत प्यारी हँसी, पिया कै मन बसी, रूप गुन करि जसी, प्रेमरासी।
'सूर' प्रभु नाम सुनि, सदन तनु बल भयौ, अंग-प्रति-छवि-निरषि रमादासी।।2443।।

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