तुम अलि कासौ कहत बनाइ।
बिनु समुझैं हम फिरि फिरि बूझति, बारक बहुरौ गाइ।।
कहु किहि गमन कियौ स्यंदन चढ़ि, सुफलकसुत के संग।
किहिं वधि रजक लिए नाना पट, पहिरे अपने अंग।।
किहिं हति चाप निदरि गज निज बल, किहिं मल्लनि मथि जाने।
उग्रसेन वसुदेव देवकी किहिऽब निगड़ तै आने।।
काकी करत प्रसंसा निसि दिन, कौनै घोप पठाए।
किहिं मातुल हति कियौ जगत जस, कौन मधुपुरी छाए।।
माथैं मोर मुकुट उर गुंजा, मुख मुरली कल बाजै।
'सूरदास' जसुदानँदनंदन, गोकुल कान्ह बिराजै।।3617।।