हमकौ हरि की कथा सुनाउ।
ये आपनी ज्ञानगाथा अलि, मथुरा ही लै जाउ।।
नागरि नारि भलैं समझैगी, तेरौ बचन बनाउ।
पा लागौं ऐसी इन बातनि, उनही जाइ रिझाउ।।
जौ सुचि सखा स्याम सुंदर कौ, अरु जिय मैं सति भाउ।
तौ बारक आतुर इन नैननि, हरि मुख आनि दिखाउ।।
जौ कोउ कोटि करै कैसिहु बिधि, बल विद्या व्यवसाउ।
तउ सुनि ‘सूर’ मीन कौ जल बिनु, नाहिंन और उपाउ।।3618।।