घर ही के बाढ़े रावरे।
नाहिन मीतवियोग बस परे, अनव्यौगे अलि बावरे।।
बरु मरि जाइ चरै नहि तिनुका, सिंह को यहै स्वभाव रे।
स्रवन सुधामुरली के पोषै, जोग जहर न खवाब रे।।
ऊधौ हमहिं सीख कह दैहौ, हरि बिनु अनत न ठाँव रे।
'सूरदास' कहा लै कीजै, थाही नदिया नाव रे।।3616।।