ज्यौं-ज्यौं मुरलिहिं महत दीयौं।
त्यौं-त्यौं निदरि स्याम कोमल तन, बदन-पियूष पियौ।।
राखे रहति पानि-पल्लव गहि, होत न काज बियौ।
पौढ़ति आपु अधर-सेज्या पर, सकुचत नाहिं हियौ।।
जग जान्यौ रति-पति सिव जारयौ, सो इहिं सब्द जियौ।
मेटी बिधि मरजाद सूर इहिं, जो भायौ सो कियौ।।1321।।