मुरली महत दियैं इतरानी।
निदरि पियति पीयूष अधर कौं, स्याम नहीं यह जानी।।
कर गहि रहो टरति नहिं नैकुहुँ, दूजौ काज न होइ।
लाज नहीं आवति अति निधरक, रहित बदन पर सोइ।।
सिव कौ दह्यौ काम इहिं ज्यायौ, सबद सुनत अकुलाई।
आरज-पथ बिधि की मरजादा, सूर सबनि बिसराई।।1322।।