मुरलिया हरि कौं कहा कियौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग गौरी


मुरलिया हरि कौं कहा कियौ।
इनकौं नहीं और कछु भावै, यौं अपनाइ लियौ।।
औरै दसा भई मोहन की, कहा मोहि‍नी लाई।
अधर-सुधा-रस देत निरंतर, राखत ग्रीव नवाई।।
कर जोरे आज्ञा प्रतिपालत, कहाँ रही दुखहाई।
सुनहु सूर ऐसी नान्हीं कौं, काहै लाड़ लड़ाई।।1320।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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