जौ पै यहै बिचार परी।
तौ कत कलि-कलमष लूटन कौं, मेरी देह धरी ?
जौ नाहीं अनुरत नाम जग, बिदित बिरद कत कीन्हौं ?
काम-क्रोध-मद, लोभ कै, हाथ बाँधि, कत दीन्हौं ?
मनसा और मानसी सेवा, कोउ आध करि जानौं।
काकौ गृह, दारा सुत, संपति, जासौं कीजै हेत ?
सूरदास प्रभु दिन उठि मरियत, जम कौं लेखौ देत।।211।।
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