भजहु न मेरे स्याम मुरारी।
सब संतनि के जीवन हैं हरि कमल-नयन प्यारे हितकारी।
या संसार-समुद्र, मोह-जल, तृष्ना-तरँग उठति अति भारी।
नाव न पाई सुमिरन हरि कौ, भजन-रहित बूड़त संसारी।
दीन-दयाल, अधार सवनि के परम सुजान, अखिल अधिकारी।
सूरदास किहि तिहि तजि जाँचै, जन-जन जाँचत होत भिखारी।।212।।
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