जनि हठ करहू सारँग नैनी।
सारँग ससि सारँग पर सारँग ता सारँग पर सारँगबैनी।।
सारँग रसन, दसन गुनि सारँग, सारँगसुत दृग निरखनि पैनी।
सारँग कहौ सु क्यौ न बिचारौ, सारँगपति सारँग रची सैनी।।
सारँग सदनहिं ले जु बरुनि गई, अजहूँ न मानति गत भई रैनी।
'सूरदास' प्रभु तुव मग जोवै, अंधकरिपु ता रिपु-सुख-दैनी।।2798।।