उत्तर न देति मोहिं मोहिनी रही ह्वै मौन -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिहागरौ


उत्तर न देति मोहिं मोहिनी रही ह्वै मौन, सुनि सब मेरी बात नैकहूँ न मटकी री।
अब धौ चलैगी कब, रजनी गई री सब, ससिवाहन की घरनी वै देखि लटकी री।।
नैना री करे अलोल, धरे री पानी कपोल, भुव नख लिखै तिलहू न कछु भटकी री।
मुगुध बधू री सठ, काहे कौ परी है हठ, परम भावती है तू नागर सु नट की री।।
धुरुब समान आए री जु कहूँ सप्तरिषि, बहुरि तौ वेर ह्वैहै तमचुर रट की री।
'सूर' सखि जाइ बलि, राधिका कुँवरि चलि, आजु छबि नीकी तेरे आछे नील पट की री।।2797।।

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