कुबरी पूरब तप करि राख्यौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग रामकली



कुबरी पूरब तप करि राख्यौ।
आए स्याम भवन ताही कै, नृपति महल सब नाख्यौ।।
प्रथमहिं धनुष तोरि आवत हे, बीच मिली यह धाइ।
तिहिं अनुराग वस्य भए ताकै, सो हित कह्यौ न जाइ।।
देवकाज करि आवन कहि गए, दीन्हौ रूप अपार।
कृपा दृष्टि चितवतहीं श्री भइ, निगम न पावत पार।।
हम तै दूरि दीन के पाछै, ऐसे दीनदयाल।
'सूर' सुरनि करि काज तुरतही, आवत तहाँ गोपाल।।3100।।

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