कंस मारि सुरकाज कियौ।
माता पिता बंदि तै छोरे, दुख बिसरयौ आनंद हियौ।।
उग्रसेन कौ धाइ मिले हरि, अभय अचल करि राज दियौ।
असुर बंस निरवंस छिनक मै, ऐसौ नहिं कोउ और बियौ।।
मिली कूबरी चंदन लै कै, ऐसैहि हरि कौ नाम लियौ।
सुनहु 'सूर' नृप पास जाति ही, बीच सुकृत अति दरस दियौ।।3099।।