कहँ लौ मानौ अपनी चूक।
बिनु गुपाल सखि री यह छतिया, ह्वै न गई द्वै टूक।।
तन मन धन घर बन अरु जोबन, ज्यौ भुबंग कौ फूक।
हृदय जरत है दावानल ज्यौ, कठिन बिरह की ऊक।।
जाकी मनि सिर तै हरि लीन्ही, कहा कहै अहि मूक।
'सूरदास' ब्रजबास बसी हम मनौ सामुहै सूक।। 3220।।