उधौ बानी कौन ढरैगौ -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

Prev.png
राग सारंग


 
उधौ वानी कौन ढरैगौ, तोसौ उत्तर कौन करैगौ।
या पाती के देखत ही अब, जल सावन कौ नैन ढरैगौ।।
विरहअगिनि तन जरत निसादिन, करहि छुवत तुव जोग जरैगौ।
नैन हमारे सजल है तारे, निरखत ही तेरौ ज्ञान गरैगौ।।
हमहिं बियोगऽरु सोग स्याम कौ, जोग रोग सौ कौन अरैगौ।
दिन दस रहौ जु गोकुल महियाँ, तब तेरौ सब ज्ञान मरैगौ।।
सिंगी सेल्ही भसमऽरु कथा, कहि अलि काके गरै परैगौ।
जे ये लट हरि सुमननि गूँधी, सीस जटा अब धरैगौ।।
जोग सगुन लै जाहु मधुपुरी, ऐसे निरगुन कौन तरैगौ।
हमहिं ध्यान पल छिन मोहन कौ, बिनु दरसन कछुवै न सरैगौ।।
निसि दिन सुमिरन रहत स्याम कौ, जोग अगिनि मैं कौन जरैगौ।
कैसहु प्रेम नेम मोहन कौ, हित चित तै हमरै न टरैगौ।।
नित उठि आवत जोग सिखावन, ऐसी बातनि कौन भरैगौ।
कथा तुम्हारी सुनत न कोऊ, ठाड़े ही अब आप ररैगौ।।
बादिहि रटत उठत अपने जिय, को तोसौ बेकाज लरैगौ।
हम अँगअंग स्याम रँग भीनी, को इन बातनि ‘सूर’ डरैगौ।।3619।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः