इत-उत देखि द्रौपदी टेरी -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

Prev.png
राग मारू




इत-उत देखि द्रौपदी टेरी
ऐंचत बसन, हँसत कौरव-सुत, त्रिभुवन-नाथ, सरन हौं तेरी।
सरबस दै अंबर तन बाँच्‍यौ, सोउ अब हरत, जाति पति मेरी।
क्रोधित देखि हंसै कौरव-कुल, मानौ मृगी सिंह बन घेरी।
गहि दुस्‍सासन’ केस सभा मँह, बरबस लै आयौं ज्‍यौं चेरी।
पांडव सब पुरुषारथ छाँड़यौ, बाँधे कपट-वचन को बेरी।
हा जदुनाथ द्वारिका-बासी, जुग-जुग भक्‍त-आपदा फेरी।
बसन-प्रवाह बड़यौ सुनि सूरज, आरत वचन कहे जब टेरी।।251।।

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः