जब गहि राजसभा मैं आनी -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग कल्‍यान



जब गहि राजसभा मैं आनी।
द्रुपदसुता पटहीन करन कौं दुस्‍सासन अभिमानी।
परै बज्र या नृपति-सभा पै, कहति प्रजा अकुलानी।
बैठे हँसत करन, दुर्जोधन, रोवति द्रौपदि रानी !
जित देख्‍ति तित कोऊ नाहीं, टेरि कहति मृदु बानी।
हा जदुनाथ, कमल-दल-लोचन, करुनामय, सुखदानी।
गरुड़ चले देखे नँदनंदन ध्‍यान-चरन-लपटानी।
सूरदास प्रभु कठिन विपति सौं राखि लियौ जग जानी।।250।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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