आजु ब्रज महा घटनि धन घैरौ।
राखि स्याम अब कैं इहिं अवसर, सब चितवत मुख तैरौ।।
कोटि छयानबे मेघ बुलाए, आनि कियौ ब्रज डेरौ।
मुसलाधार टूटै चहुँ दिसि तै, ह्वै गयौ दिवस अँधेरी।।
इतनी सुनत जसोदा-नंदन, गोबर्धन-तन हेरौ।
लियौ उठाइ सैल भुज गहि कै, महि तैं पकरि उखेरौ।।
सात दिवस जल बरसि सिराने, हारि मानि मुख फैरौ।
सूर सहाइ करी निज भुज-बल बूंद न आयौ नेरौ।।869।।