गगन मेध घहरात थहरात गाता।
चपला चमचमाति, चमकि नभ महरात, राखि क्यौं न ब्रज नंद-दाता।।
सुनत करुना बैंन, उठे हरि बल-ऐन, नैन को सैन गिरि-तन निहारयौ।
सबनि धीरज दियौ, उचकि मंदर लियौ, कह्यौ गिरिराज तुमकौं उबारयौ।।
करज कैं अग्र भुज बाम गिरिवर धरयौ, नाम गिरिराज परयौ भक्त काजै।
सूर प्रभु कहत ब्रज-बासि-वासिनिनि, राखि तुम लियौ गिरिराज-राजैं।।870।।