आजु बन लीला ललित सँवारी।
ग्वाल बाल सखियाँ सँग लीन्हे राधे रूप मुरारी।।
मृगमद तै लेपन कियौ पुनि तापर चंदन खौर।
बनमाला मुक्तावली सिर मुकुट चंद्रिका मोर।।
घेरि गूजरिनि सौ कह्यौ तुम देहु दही कौ दान।
कौडी एक न छाँड़िहौ मैं वै न कनौड़े कान्ह।।
एक सखी गोकुल ग़ई तिनि कह्यौ स्याम सौ टेरि।
दानी एक नयौ भयौ तिनि दयौ अमल तुव फेरि।।
सुनि मोहन कोहन भयौ उठि गोहन दौरे धाइ।
रूप अनूप बिलोकि कै कछु भ्रम तै भापि न जाइ।।
निरखहि लोचन मिले वै मंद मंद मुसुकाइ।
राम राम हो राम जै दोउ बिहँसि मिले उर लाइ।।
रस कै बस ह्वै प्रेम तै मिलि लपटि रहे भुज चारि।
‘सूर’ स्याम बस राधिका उत राधे हरि अनुहारि।। 37 ।।