तुम्है कोउ हेरत है हो कान्ह -सूरदास

सूरसागर

2.परिशिष्ट

भ्रमर-गीत

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तुम्है कोउ हेरत है हो कान्ह।
गोरी सी भोरी थोरे दिननि की थोरी बैस उठान।।
पहिरे नीलाबर अति सोहै मुखदुति चंदसमान।
बंसीवट की ओर गई है लाल मनोहर जान।।
जानति है मन बच क्रम मोहन तुम मैं बाँकै प्रान।
'सूरदास' प्रभु अबही चलियै नई करौ पहिचान।। 38 ।।

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