यह पट पीत कहाँ तै पायौ -सूरदास

सूरसागर

2.परिशिष्ट

भ्रमर-गीत

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यह पट पीत कहाँ तै पायौ।
इतनक बोल गुपुत माधौ कौ राधे तै तिहुँ लोक जनायौ।।
एक समय अंतर बन खेलत बहुत जतन करि मही उठायौ।
नाही याकौ मोल न गाहक घर उपज्यौ नहिं मोल मँगायौ।।
सुमिरत ध्यान सबै उर अतर त्रिभुवन रूप भलौ बर पायौ।
ये सब भेद चतुर सोइ जानै 'सूरदास' प्रभु कहि समुझायौ।। 36 ।।

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