बहुरि स्याम सुख-रास कियौ।
भुज-भुज जोरि जुरीं ब्रजबाला, वैसेई रस उमँगि हियौ।।
वैसेंहि मुरली नाद प्रकास्यौ, वैसैंहि सुर-नर बस्य भए।
वैसैंहि उड़गन-सहित निसापति, वैसैंहि मारग भूलि गए।।
वैसैंहि नृत्य तरंग बढ़ायौ, वैसैंहि बहुरौ काम जक्यौ।।
वहै निसा, वैसैंहि मन जुवती, वैसैंही हरि सबनि भजे।
सूर स्याम वैसेइ मन-मोहन वैसैंहि प्याहरी निरखि लजे।।1132।।