मोहन रच्यौ अदभुत रास -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग नट


मोहन रच्यौ अदभुत रास।
संग मिलि वृषभानु-तनया गोपिका चहुँ पास।।
एकही सुर सकल मोहे, मुरलि सुधा-प्रकास।
जलहु थल के जीव थकि रहे, मुनिनि मनहिं उदास।।
थकित भयौ समोर सुनि कै, जमुना उलटी धार।
सूर-प्रभु ब्रज-बाम मिलि बन, निसा करत बिहार।।1133।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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