स्यामा छबि निरखति नागरि नारि।
प्यारी छबि निरखत मन मोहन, सकत न नैन पसारि।।
पिय सकुचत, नहिं दृष्टि मिलावत, सन्मुख होत लजात।
श्री राधिका निडर अवलोकति, अतिहि हृदय हरषात।।
अरस-परस मोहनि मोहन मिलि, सँग गोपी गोपाल।
सूरदास प्रभु सब गुन लायक, दुष्टनि के उर-साल।।1131।।