बड़ौ निठुर बिधना यह देख्यौ।
जब तैं आजु नंदनदन-छबि, बार-बार करि पेख्यौ।
नख, अँगुरी, पग, जानु, जंघ, कटि रचि कीन्हौ निरमान।
हृदय, बाहु, कर, अंस अँग अँग, मुख सुंदर अति बान।
अधर, दसन, रसना, रस बानी, स्रवन, नैन अरु भाल।
सूर रोम प्रति लोचन देत्यौ, देखत बनत गुपाल।।643।।